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Khajuraho MP News: लोहे की कड़ाही और बेटियों के विवाह की सामग्री के लिए प्रसिद्ध है मेला

 Editor in Chief: Rajesh Patel (Aapka news Star)

                                                           खजुराहो, Mar 15, 2025




खजुराहो मेला: लोहे की कड़ाही और बेटियों के विवाह की सामग्री के लिए प्रसिद्ध है मेला

मेले को अपने बचपन से देखते आ रहे हैं, इससे यह तो स्पष्ट है कि मेले का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। उन्होंने बताया कि पर्यटन नगरी का यह मेला न सिर्फ छतरपुर जिले बल्कि समूचे बुंदेलखंड के सबसे लोकप्रिय आयोजनों में से एक है।

Khajuraho MP News: सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा का निर्वाह करते हुए आज भी महाशिवरात्रि से होली तक पर्यटन नगरी खजुराहो में ऐतिहासिक मेले का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष का मेला महाशिवरात्रि के दिन शुरु हुआ था और अब मेला अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। हालांकि पहले दिन से लेकर अभी तक लगातार मेले में आने वाले लोगों की संख्या एक समान रही है, जिससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में महाशिवरात्रि मेले का कितना महत्व है।


स्थानीय जानकार आनंद अग्रवाल बताते हैं कि विश्व विख्यात पर्यटन नगरी में लगने वाले इस महाशिवरात्रि मेले का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। इतिहासकारों का ऐसा मानना है कि जिस कालखंड में खजुराहो के सुप्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण हुआ था, उसी कालखंड से यहां मतंगेश्वर महादेव मंदिर के सामने मेला लगाया जा रहा है। अग्रवाल के मुताबिक उन्होंने अपने पूर्वजों से यह बात सुनी है कि वे भी इस मेले को अपने बचपन से देखते आ रहे हैं, इससे यह तो स्पष्ट है कि मेले का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है। उन्होंने बताया कि पर्यटन नगरी का यह मेला न सिर्फ छतरपुर जिले बल्कि समूचे बुंदेलखंड के सबसे लोकप्रिय आयोजनों में से एक है। संपूर्ण बुंदेलखंड के लोग अपने-अपने साधनों से यहां पहुंचते हैं। स्नान के उपरांत मतंगेश्वर महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं और इसके बाद मेले का लुत्फ उठाते हैं।


स्थानीय निवासी एवं व्यापारी परवेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि खजुराहो का यह महाशिवरात्रि मेला लोहे की कड़ाही और बेटियों के विवाह में उपहारस्वरूप दी जाने वाली सामग्री (बक्से, अलमारी इत्यादि) के लिए विख्यात रहा है। हालांकि अब आधुनिकता के दौर में लोग खरीददारी कम करते हैं लेकिन एक समय ऐसा भी था जब लोग वर्ष भर इस मेले का इंतजार करते थे और जब यह मेला लगता था तब यहां से खरीददारी करते थे। उन्होंने यह भी बताया कि पूर्व में मेले के साथ-साथ रामलीला और कृष्णलीला भी होती थी लेकिन कालांतर में मेले से यह आयोजन लुप्त हो गए, अब एक बार फिर से आयोजन होने से उत्साह बढ़ा है।


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