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पौराणिक कथा : नीलकंठ पक्षी, जिसे आमतौर पर नीलकंठ या नीलकंठी के नाम से जाना जाता है

 Editor in Chief: Rajesh Patel (Aapka News Star)

पौराणिक कथा, Oct 12, 2024

नीलकंठ पक्षी, जिसे आमतौर पर नीलकंठ या नीलकंठी के नाम से जाना जाता है, भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। इसे अक्सर शांति, प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है।

कहानी कुछ इस तरह है:

एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में एक युवा युवक रहता था, जिसे नीलकंठ पक्षी देखने का बहुत शौक था। उसने सुना था कि जो व्यक्ति इस पक्षी को देखता है, उसे अपार सुख और शांति मिलती है। उसने ठान लिया कि वह नीलकंठ को अवश्य देखेगा।

वह हर दिन जंगल में जाकर पक्षी की खोज करता, लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगती। गाँव वाले उसे कहते थे कि नीलकंठ केवल उन्हीं को दिखता है, जो सच्चे मन से उसकी तलाश करते हैं।

एक दिन, युवक ने निर्णय लिया कि वह अपनी खोज को एक नए दृष्टिकोण से करेगा। उसने सोचा कि नीलकंठ का दर्शन केवल उसे नहीं, बल्कि पूरे गाँव के लिए शांति का संदेश ला सकता है। उसने गाँव के लोगों को इकट्ठा किया और सब मिलकर जंगल में गए।

जंगल में, उन्होंने एक साथ ध्यान किया और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लिया। तभी अचानक, एक सुंदर नीलकंठ पक्षी उनके सामने आया। सब लोग उसे देखकर चकित रह गए। युवक ने देखा कि नीलकंठ के आने से गाँव में शांति और प्रेम का संचार हो गया।

इस अनुभव ने उसे सिखाया कि कभी-कभी, किसी चीज़ को पाने के लिए हमें अपने इरादों को बदलना पड़ता है। नीलकंठ ने उन्हें बताया कि सच्चा सुख और शांति साझा करने में ही है।

इस तरह, नीलकंठ पक्षी ने न केवल युवक को खुश किया, बल्कि पूरे गाँव में एकता और प्रेम का संदेश फैलाया।

इस कहानी का संदेश है कि सच्ची खोज और एकता से हम अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं।

हिंदू पौराणिक कथा : 

नीलकंठ की कहानी हिंदू पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण कथा है, जो भगवान शिव से जुड़ी हुई है। यह कहानी समुंदर मंथन (सागर मंथन) की है, जिसमें देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए मिलकर समुद्र का मंथन किया।

जब मंथन शुरू हुआ, तो उसके दौरान कई विषैले तत्व भी निकले, जिनमें से एक अत्यंत विषैला हलाहल (विष) था। इस विष की तीव्रता इतनी अधिक थी कि उसने सम्पूर्ण ब्रह्मांड को संकट में डाल दिया। देवताओं और असुरों ने इसे नष्ट करने के लिए भगवान शिव की शरण ली।

भगवान शिव ने मानवता और संसार की रक्षा के लिए इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे वह विष उनके गले में अटक गया और उन्होंने उसे निगला नहीं। इस कारण से उन्हें "नीलकंठ" कहा जाने लगा, क्योंकि विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया था।

इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि भगवान शिव ने अपने बलिदान के माध्यम से संसार की रक्षा की और यह भी दर्शाता है कि कैसे कठिनाइयों का सामना करने के लिए साहस और बलिदान आवश्यक होते हैं |

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